Editorial: किसानों की मांगों का समाधान हो, व्यवस्था से न हो टकराव
- By Habib --
- Tuesday, 22 Aug, 2023
The demands of the farmers should be resolved
The demands of the farmers should be resolved पंजाब एवं हरियाणा में किसानों का विभिन्न मांगों को लेकर फिर से सक्रिय होना जहां तनावपूर्ण स्थिति बनाता है, वहीं सुनाम में एक किसान की ट्रैक्टर-ट्रॉली के नीचे आकर मौत होना दुर्भाग्यपूर्ण है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के दौरान अनेक किसानों की मृत्यु हुई, जिसकी भरपाई नहीं हो सकी है। लेकिन अब फिर से किसान जब अपनी मांगों को लेकर सक्रिय हो रहे हैं तो पुलिस का उनके प्रति रवैया सख्त है, जिससे ऐसे हादसे घट रहे हैं।
पंजाब इस समय बाढग़्रस्त है और राज्य सरकार इन हालात पर नियंत्रण पाने के लिए दिन-रात काम कर रही है, लेकिन ऐसे में उसे किसान आंदोलनकारियों से भी जूझना पड़ रहा है। अब यह भी सामने आ रहा है कि किसान चंडीगढ़ में प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए चंडीगढ़ में घुसना चाहते हैं। बेशक, प्रत्येक को शांतिपूर्वक आंदोलन के जरिये अपनी बात कहने का हक है, लेकिन चंडीगढ़ में आकर प्रदर्शन की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए वहीं किसान आंदोलनकारियों को भी यह समझना होगा कि वे यहां आकर प्रदर्शन न करें। इससे पहले मोहाली सीमा पर एक हिंसक प्रदर्शन देखा जा चुका है, जिसमें चंडीगढ़ पुलिस पर हमला हुआ था और उपद्रव की स्थिति पैदा हो गई थी।
गौरतलब है कि पंजाब के किसान इसकी मांग कर रहे हैं कि बाढ़ पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए और पुलिस हिरासत में लिए गए किसान नेताओं को छोड़ा जाए। इन मांगों को पूरा कराने के लिए किसान आंदोलनकारी टोल प्लाजा को फ्री कराने की अपनी पुरानी रणनीति पर काम कर रहे हैं। सुनाम-बड़सर टोल प्लाजा पर इस तरह की स्थिति के दौरान एक किसान की मौत हो गई, वहीं एक पुलिस कर्मी समेत अन्य घायल हो गए। जाहिर है, आंदोलनकारी अपने आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हैं।
भारतीय किसान यूनियन की ओर से तो अपने दिवंगत किसान साथी का अंतिम संस्कार करने तक से इनकार कर दिया गया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस की भूमिका विडम्बनापूर्ण होती है, क्योंकि उसे व्यवस्था कायम करनी है तो कार्रवाई भी करनी पड़ेगी, लेकिन उसी कार्रवाई के दौरान प्रदर्शनकारी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, जिससे हादसे की आशंका रहती है। हालांकि यह प्रश्न है कि आखिर ऐसे हालात बन कैसे जाते हैं। निश्चित रूप से सरकारें तब तक मांगों पर विचार करने को तैयार नहीं होती हैं, जब तक कुछ बड़ा नहीं घट जाता। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी प्रस्तावित हैं, ऐसे में किसानों की, शिक्षकों की, लिपिकों की और तमाम उन कर्मचारियों की अपेक्षाएं बढ़ रही हैं, जिन्हें लगता है उनकी मांगों पर गौर नहीं हो रहा या फिर उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रही। हरियाणा में बीते लंबे समय लिपिक हड़ताल पर थे, लेकिन मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद उन्होंने अपनी हड़ताल वापस ली। यानी प्रत्येक मसला मुख्यमंत्री के स्तर पर ही आकर सुलझ सकता है। अब किसानों को लेकर भी यही स्थिति है।
पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान की ओर से कहा गया है कि राज्य सरकार किसानों पर विशेष ध्यान दे रही है। किसानों की सलाह से ही नई नीतियां बना रहे हैं, बाढ़ से हुए नुकसान का मुआवजा भी देना शुरू कर दिया है। वहीं विशेष गिरदावरी की रिपोर्ट आनी शुरू हो गई है, किसानों को उनके नुकसान का पूरा मुआवजा दिया जाएगा। सरकार की ओर से यह दिया गया यह जवाब उन परिस्थितियों में संतोषजनक लगता है,जब राज्य में किसानों को फसल क्षति का मुआवजा प्रदान किया जा रहा है। बेशक, सरकार का दावा अपनी जगह होता है, वहीं किसानों की मांग भी अपनी जगह होती हैं। लेकिन यह भी तो राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि किसी भी आंदोलन को अव्यवस्थित होने से रोका जाए और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखी जाए।
सुनाम में पुलिस और किसानों के बीच उपजे तनाव की वजह यही बनी है कि किसानों ने चंडीगढ़ की तरफ बढ़ने की कोशिश में बैरिकेडिंग तोड़ दी। इसके बाद किसान हाईवे की तरफ बढ़े तो पुलिस ने बैरिकेड लगाकर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन ट्रैक्टर-ट्रालियों व अन्य वाहनों पर सवार किसान बैरिकेड तोड़ते हुए आगे बढ़ गए। आखिर किसानों को कानून-व्यवस्था को तोड़ने की इजाजत कैसे मिल गई। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के समय भी यही हुआ था, जब पंजाब से हजारों की संख्या में किसानों ने पहले हरियाणा की सीमा पर उपद्रव किया था और इसके बाद दिल्ली में घुसने की कोशिश लेकिन उन्हें बॉर्डर पर रोक दिया गया। निश्चित रूप से किसानों की मांगों का समाधान होना चाहिए लेकिन किसानों के लिए भी यह आवश्यक है कि वे कानून को अपने हाथों में लेने से बचें। सरकार की जिम्मेदारी है कि समय रहते उनकी मांगों पर विचार हो क्योंकि तनावपूर्ण स्थिति समय और विकास दोनों को बाधित करती है।
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